Friday 16 January 2015

शंकर की तीसरी आँख और शिवलिंग...

शंकर की तीसरी आँख और शिवलिंग.....


नेत्र, नयन या आँखें, हमारे शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग...इसका सीधा संपर्क न सिर्फ शरीर से अपितु, मन एवं आत्मा से भी है...जो मनुष्य शरीर से स्वस्थ होता है उसकी आखें चंचल, अस्थिर और धूमिल होती हैं, परन्तु जिस व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर अर्थात आत्मा स्वस्थ होती है उसकी आँखें स्थिर, तेजस्वी और प्रखर होतीं हैं....उनमें सम्मोहने की शक्ति होती है...हममें से कई ऐसे हैं जो आखों को पढना जानते हैं ...आँखें मन का आईना होतीं हैं...मन की बात बता ही देतीं हैं...
आँखों की संरचना की बात करें तो इनमें...१ करोड़ २० लाख ‘कोन’ और ७० लाख ‘रोड’ कोशिकाएँ होतीं हैं , इसके अतिरिक्त १० लाख ऑप्टिक नर्वस होती है, इन कोशिकाओ और तंतुओ का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है 
स्थूल जगत को देखने के लिए हमारी आँखें बहुत सक्षम हैं परन्तु सूक्ष्म जगत या अंतर्जगत को देख पाने में जनसाधारण के नेत्र कामयाब नहीं हैं....परन्तु कुछ अपवाद तो हर क्षेत्र में होते ही हैं...और ऐसे ही अपवाद हैं हमारे प्रभु भगवान् शंकर...जो इस विद्या में प्रवीण रहे...भगवान् शंकर की 'तीसरी आँख' हम सब को दैयवीय अनुभूति दिलाती है...सोचने को विवश करती है कि आख़िर यह कैसे हुआ...?
बचपन में सुना था कि तप में लीन शंकर जी पर कामदेव ने प्रेम वाण चला दिया था, जिससे रुष्ट होकर उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी और कामदेव भस्म हो गए..सच पूछिए तो इस लोकोक्ति का सार अब मुझे समझ में आया है ...जो मुझे समझ में आया वो शायद ये हो...भगवान् शंकर तप में लीन थे और सहसा ही उनकी कामेक्षा जागृत हुई होगी...तब उन्होंने अपने मन की आँखों को सबल बना लिया और  अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर अपनी काम की इच्छा को भस्म कर दिया..इसलिए ये संभव है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास तीसरी आँख है, आवश्यकता है उसे विकसित करने की..विश्वास कीजिये ये काल्पनिक नहीं यथार्थ है ..यहाँ तक कि इसका स्थान तक निश्चित है...
जैसा कि चित्रों में देखा है ..भगवान् शंकर की तीसरी आँख दोनों भौहो के बीच में है...वैज्ञानिकों ने भी इस रहस्य का भेद जानने की कोशिश की है और पाया है कि ..मस्तिष्क के बीच तिलक लगाने के स्थान के  ठीक नीचे और मस्तिष्क के दोनों हिस्सों के बीच की रेखा पर एक ग्रंथि मिलती है जिसे ‘पीनियल ग्लैंड’ के नाम से जाना जाता है...यह ग्रंथि  गोल उभार के रूप में देखी जा सकती है, हैरानी की बात यह है कि इस ग्रंथि की संरचना बहुत ज्यादा हमारी आँखों की संरचना से मिलती है...इसके उपर जो झिल्ली होती है उसकी संरचना बिल्कुल हमारी आखों की 'रेटिना' की तरह होती है...और तो और इसमें भी द्रव्य तथा कोशिकाएं, आँखों की तरह ही हैं...इसी लिए इसे 'तीसरी आँख' भी कहा जाता है...यह भी कहा जाता है कि सभी महत्वपूर्ण मानसिक शक्तियाँ इसी ‘पीनियल ग्लैंड’ से होकर गुज़रतीं हैं...कुछ ने तो इसे Seat of the Soul यानी आत्मा की बैठक तक कहा है...सच तो यह है कि बुद्धि और शरीर के बीच जो भी सम्बन्ध होता है वह इसी 'पीनियल ग्रंथि' द्वारा स्थापित होता है... और जब भी यह ग्रंथि पूरी तरह से सक्रिय हो जाती है तो रहस्यवादी दर्शन की अनुमति दे देती है...शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा भगवान् शंकर जी के साथ...  
पीनियल ग्रंथि
'पीनियल ग्रंथि' सात रंगों के साथ साथ ultraviolet अथवा पराबैगनी किरणों को तथा लाल के इन्फ्रारेड को भी ग्रहण कर सकती है, इस ग्रंथि से दो प्रकार के स्राव निकलते हैं ‘मेलाटोनिन’ और DMT (dimethyltryptamine)...यह रहस्यमय स्राव मनुष्य के लिए जीवन दायक है....यह स्राव anti-aging में सहायक होता है...मेलाटोनिन हमारी नींद के लिए बहुत ज़रूरी है...इसका स्राव बढ़ जाता है जब हम बहुत गहरी नींद में होते हैं....मेलाटोनिन और DMT मिलकर – सेरोटोनिन का निर्माण करते हैं ,  इसलिए 'पीनियल ग्रंथि',  सेरोटोनिन उत्पादन का भंडार है, इसी से मस्तिष्क में बुद्धि का निर्माण और विकास होता है....मानसिक रोगों के उपचार में 'सेरोटोनिन' ही काम में लाया जाता है..
प्रकृति में भी बहुत सी चीज़ें हैं जिनमें 'सेरोटोनिन' प्रचुर मात्रा में पाया जाता है...जैसे केला, अंजीर, गूलर इत्यादि...अब मुझे लगता है, शायद भांग और धतूरे में भी ये रसायन पाया जाता हो...क्यूंकि शंकर भगवान् उनका सेवन तो करते ही थे...आज भी उन्हें भांग, धतूरा और बेलपत्र ही अर्पित किया जाता है...
भगवान् गौतम बुद्ध को ज्ञान की  प्राप्ति बोधी वृक्ष के नीचे हुई थी...यह भी संभव है कि उस वृक्ष के फलों में 'सेरोटोनिन' की मात्रा हो...जो सहायक और कारण बने हों, जिससे उन्हें 'बोधत्व' प्राप्त हुआ...

'पीनियल ग्लैंड' पर शोध और खोज जारी है..हम सभी जानते हैं कि हमारा मस्तिष्क बहुत कुछ करने में सक्षम है..परन्तु हम उससे उतना काम नहीं लेते...हमारे मस्तिष्क का बहुत बड़ा हिस्सा निष्क्रिय ही रह जाता है...और बहुत संभव है कि उसी निष्क्रिय हिस्से में 'तीसरे नेत्र' अथवा 'छठी इन्द्रिय' का  रहस्य समाहित हो...जिसके अनुभव से साधारण जनमानस वंचित रह जाता है....
चलते चलते एक बात और कहना चाहूँगी...शिवलिंग को अक्सर लोग, पुरुष लिंग समझा करते हैं...लेकिन गौर से 'पीनियल ग्लैंड' को देखा जाए तो इसकी आकृति गोल और उभरी हुई है,  शिवलिंग की  संरचना को अगर हम ध्यान से देखें तो क्या है उसमें....एक गोलाकार आधार, जिसमें उभरा हुआ एक गोल आकार, जिसके एक तरफ जल चढाने के बाद जल की निकासी के लिए लम्बा सा हैंडल...अब ज़रा कल्पना कीजिये मस्तिष्क की संरचना की ..हमारा मस्तिष्क दो भागों में बँटा हुआ है..दोनों हिस्से  अर्धगोलाकार हैं  और 'पीनियल ग्लैंड' ठीक बीचो-बीच स्थित है अगर हम मस्तिष्क को खोलते हैं तो हमें एक पूरा गोलाकार आधार मिलता है और उस पर उभरा हुआ 'पीनियल ग्लैंड'...किनारे गर्दन की तरफ जाने वाली कोशिकाएँ निकासी वाले हैडल की तरह लगती हैं...
अब कोई ये कह सकता है कि फिर इसे शिवलिंग क्यूँ कहा जाता है...ज़रूर ये सोचने वाली बात है... लेकिन..सोचने वाली बात यह भी है कि ...'पीनियल ग्लैंड' का आकर लिंग के समान दिखता है...और कितने लोगों ने 'पीनियल ग्लैंड' देखा है ? आम लोगों को अगर बताया भी जाता 'पीनियल ग्लैंड' के विषय में तो शायद वो समझ नहीं पाते...वैसे भी आम लोगों को किसी भी बात को समझाने के लिए आम उदाहरण और आम भाषा ही कारगर होती है...मेरी समझ से यही बात हुई होगी.. और तथ्यों से ये साबित हो ही चुका है कि भगवान् शिव औरों से बहुत भिन्न थे...बहुत संभव है उनके भिन्न होने का कारण उनका विकसित, और उन्नत 'पीनियल ग्लैंड' ही हो...और जैसा मैंने ऊपर बताया, बहुत हद तक सम्भावना यह भी हो कि शिवलिंग विकसित 'पीनियल ग्लैंड' का द्योतक हो, ना  कि पुरुष लिंग का...और यह बात ज्यादा सटीक भी लगती है...


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