Wednesday 7 June 2017



MY VILLAGE DHOSI HILL
लेख - जानिए ऋषि च्यवन की कहानी

आज इस लेख मे मैं ऋषि च्यवन की कहानी बताने जा रही हूँ ,जिन्होंने आँवला के उपर कई प्रकार के प्राकृतिक शोध करने के बाद यह प्रमाणित कर दिया कि आँवला मे कई स्वास्थ्यवर्धक गुण छिपे हुए हैं .साथ ही आँवला मानव के युवावस्था को लंबे समय तक बनाए रखने मे भी अतिउपयोगी है .
ऋषि च्यवन के पिता का नाम ऋषि भृगु और माता का नाम पुलोमा था . अपने पिता से आवश्यक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी इनका मन आत्म ज्ञान पाने के लिए विचलित था. इसलिए वो माता - पिता को छोड़कर आत्म ज्ञान प्राप्त करने वन मे चले गए .कई दशक गुजर जाने के बाद भी च्यवन जी एक ही जगह पर स्थिर होकर अपनी तपस्या मे लीन रहें . उनके शरीर मे चीटीं और दीमक ने घर बना लिया था .पूरा शरीर उनका मिट्टी का टीला बन चुका था.एक दिन राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या उस वन मार्ग से गुजर रही थी ,तो उसकी नजर उस टीले पर पड़ी .टीले मे उसे दो छिद्र दिखाई पड़ा ,जो कि ऋषि च्यवन की दो आँखें थी . जिज्ञासावश सुकन्या ने उन दोनों छिद्रों मे कांटे गड़ा दिए .कांटा गड़ते ही खून बहने लगा .शरीर के ऊपर बने मिट्टी के टीले को तोड़कर च्यवन ऋषि खड़े हो गए .उनकी तपस्या भंग हो चुकी थी . वो क्रोध मे आग -बबूला हो उठे . उन्हें अहसास हो चुका था कि वो अंधे हो चुके हैं . उनके क्रोध से घबड़ाकर सुकन्या भी मूर्छित हो गई .तभी राजा शर्याति ने च्यवन ऋषि के क्रोध को शांत करने के उद्देश्य से अपनी सोलह वर्षीय पुत्री का विवाह ऋषि च्यवन के साथ करने का निर्णय लिया .वृद्ध ऋषि च्यवन जी का विवाह सोलह वर्षीय कन्या के साथ हो गया .सुकन्या ने अपनी निष्ठापूर्ण सेवाभाव से च्यवन जी का क्रोध शांत कर दिया . ऋषि च्यवन जी हार्दिक इच्छा थी कि उन्हें अपनी पत्नी से एक पुत्र प्राप्त हो . वृद्ध पति की इच्छा पूरी करने के लिए सुकन्या मान भी गई ,किन्तु मन ही मन मे उनकी इच्छा थी कि उनके पति उनकी तरह युवा हो जाए.
एक बार देवताओं के वैध अशिवनी कुमार जी ऋषि च्यवन के आश्रम मे आए ,तो च्यवन जी उनका खूब आदर - सत्कार किए . खुश होकर अशिवनी जी ने उन्हें
वरदान मांगने को कहा .वरदान मे च्यवन जी ने उनसे अपनी युवावस्था को वापस लौटाने का वरदान माँगा . वैध अशिवनी जी ने च्यवन जी की युवावस्था को वापस लाने के लिए तीन प्रकार का उपचार किया . पहले चरण मे उन्होंने एक तालाब( जिसका नाम चन्द्र्कुप है .यह तालाब हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर स्थित ढ़ोसी पर्वत पर आज भी है ) मे कुछ जड़ी - बूटियों को डाला और उसमे च्यवन जी को स्नान करवाया . दूसरे चरण मे जड़ी - बूटी का लेप लगाया और अंतिम चरण मे एक खास जड़ी - बूटी को दवा के रूप मे सेवन करने को दिया . तीनों चरण के उपचार के पश्चात् ऋषि च्यवन की युवावस्था लौट आई .
वैध अशिवनी जी से च्यवन जी ने जो जड़ी - बूटी के बीज प्राप्त किया उसे बो दिया और संकल्प लिया कि वो अपना सारा जीवन आयुर्वेद के अनुसंधान मे लगा देंगे , ताकि मनुष्य को वो आयुर्वेद द्वारा स्वस्थ जीवन और युवावस्था को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए प्रेरित कर सके .च्यवन जी ने जो बीज बोया था , वो कुछ वर्ष बाद एक वृक्ष के रूप मे बड़ा हो गया और उस वृक्ष पर जो फल लगा ,उसे आयुर्वेद मे दिव्य फल ' आँवला ' कहा गया . ऋषि च्यवन जी बहुत लम्बे समय तक इस दिव्य फल की उपयोगिता पर शोध करते रहें और कई वर्षों के बाद आयुर्वेद की प्रसिद्ध दवा च्यवनप्राश का आविष्कार किया . इस च्यवनप्राश मे अस्सी जड़ी - बूटियों के साथ - साथ आँवले का भुर्ता भी शामिल है . यानि की आज से दस हजार साल पहले ढ़ोसी पर्वत पर ऋषि च्यवन जी के आश्रम मे उनके अथक प्रयास से च्यवनप्राश का आविष्कार हुआ ,जो आज भारतीय परिवार मे सचमुच मे एक स्वास्थवर्धक टॉनिक के रूप मे जाना जाता है .
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2016-07-07
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